المال المأخوذ ظلما وما يجب فيه في الفقه الإسلامي /
محفوظ في:
المؤلف الرئيسي: | |
---|---|
مؤلفون آخرون: | |
الوثيقة: | كتاب |
اللغة: | Arabic |
منشور في: |
الرياض :
دار كنوز إشبيليا للنشر والتوزيع،
1999 1420.
|
الطبعة: | ط. 1. |
الموضوعات: | |
الوسوم: |
إضافة وسم
لا توجد وسوم, كن أول من يضع وسما على هذه التسجيلة!
|
LEADER | 01439nam a22002897a 4500 | ||
---|---|---|---|
001 | u13155 | ||
003 | KWAREICT | ||
005 | 20220408112941.0 | ||
008 | 190312s1999 su bc 00010|ara d | ||
020 | |a 9960727629 | ||
035 | |a (Kwareict) a26749 | ||
040 | |c KwareTech | ||
082 | 0 | 4 | |a 255 خ ط م |2 21 |
100 | 1 | |a الخويطر، طارق بن محمد بن عبدالله. | |
245 | 1 | 2 | |a المال المأخوذ ظلما وما يجب فيه في الفقه الإسلامي / |c تأليف طارق بن محمد بن عبدالله الخويطر؛ تقديم صالح بن علي بن غصون ...[وأخ..]. |
250 | |a ط. 1. | ||
260 | |a الرياض : |b دار كنوز إشبيليا للنشر والتوزيع، |c 1999 |c 1420. | ||
300 | |a 2 ج. ؛ |c 24 سم. | ||
500 | |a يشتمل على فهارس. | ||
504 | |a قائمة ببليوجرافية. | ||
650 | 4 | |a الجنايات (فقه إسلامي) | |
650 | 4 | |a الأموال ( فقه إسلامي) | |
700 | 0 | |a ابن غصون، صالح بن علي، |e تقديم. | |
942 | |2 ddc |c BOOK | ||
999 | |c 17420 |d 17420 | ||
952 | |0 0 |1 0 |2 ddc |4 0 |6 255_000000000000000_خ_ط_م_V_1 |7 1 |9 97168 |a MAML |b MAML |c STACKS |d 2019-03-12 |l 0 |o 255 خ ط م V 1 |p 070153191 |r 2021-04-04 |t 1 |w 2021-04-04 |y BOOK | ||
952 | |0 0 |1 0 |2 ddc |4 0 |6 255_000000000000000_خ_ط_م_V_2 |7 1 |9 97169 |a MAML |b MAML |c STACKS |d 2019-03-12 |l 0 |o 255 خ ط م V 2 |p 070153192 |r 2021-04-04 |t 1 |w 2021-04-04 |y BOOK |